सीताराम तिवारी और जगरानी देवी
के बच्चे तो कई हुए मगर जन्म के कुछ साल बाद ही मौत हो जाती थी। देवी देवताओं के दर
पर पति- पत् नी
ने खूब नाक रगड़ी। अत्यंत गरीबी के कारण जीना मुश्किल था। ऐसे में किसी पंडित ने सलाह
दी घर छोड़ दो। दोनों उन्नाव छोड़कर (झाबुआ) भावरा मध्य प्रदेश आ गए। उन्हें एक बाग
की रखवाली का काम मिला और रहने को एक झोपड़ी। बद किस्मती यहां भी साथ रही। बच्चे होते
मगर साथ नहीं देते। नवें बालक के रूप में चंद्रशेखर का जन्म हुआ। चंद्रशेखर घर में
प्यार से चंदू बुलाए जाते। वहीं पांचवीं तक पढ़ाई की। खतरनाक गवंई खेल खेलते देख मां
हमेशा डरी रहती। मारती समझाती मगर चंदू नहीं मानता। इसी बीच अति गरीबी से जूझते पिता
ने तहसील में पानी पिलाने की नौकरी का पांचवीं पास चंदू के लिए जुगाड़ किया। पिता के
दबाव में चंदू काम पर जाने तो लगा मगर उसका मन वहां नहीं जमा। जल्दी ही वह अधिकारियों
को जवाब देने लगा। चंदू ने काम छोड़ दिया। गांव में चूड़ी बेचने आने वाले एक युवक से
दोस्ती हो गई और एक दिन उसके साथ चंदू घर छोड़कर भाग गया।
झघर में मां खूब रो कलपी, पिता ने सामर्थ्य भर तलाशा। दोनों
की रातें रोते और करवटें बदलते बीततीं। पिता ने अधिकारियों की मिन्नतें की जहां उम्मीद
थी वहां गए भी मगर उनके चंदू का कुछ पता नहीं चला। इधर चंद्रशेखर बंबई जा पहुंचा। होटल
में काम किया। कपड़े रंगे। पानी की जहाजों पर रहा मगर बंबई नहीं भाई। जल्द ही बंबई
से मन भर गया तो फिर बनारस की ट्रेन में जा चढ़े। मुफ्त संस्कृत शिक्षा के विद्यालय
में दाखिला ले लिया। यहीं जब वे आठवीं में थे तो महात्मा गांधी की जय बोलकर कोड़े खाए।
काकोरी कांड के बाद बर्षों इधर
उधर भटकते रहे। झांसी में महात्मा बन एक कुटिया में रहते थे सरकारी जासूस वहां भी आने
लगे। आजाद को लगा शायद अब अंग्रेजों के शिकंजे से बचना मुश्किल है तो ऐसे में एक बार
अम्मा-बाबूजी
से मिलने का मन हुआ और जा पहुंचे झाबुआ। डर था पुलिस का सो गांव के पास जंगल में ही
डेरा जमाया, पुलिस
नहीं दिखी तो एक रात जा पहुंचे घर।
जगरानी देवी तो बेटे को देख बावली
सी हो गई। सब बैठे बातें कर रहे थे तभी आजाद ने देखा मां की सारी अगुलियां एक दूसरे
से बंधी हुई हैं। पूछा तो मां की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। बताया पिता ने जब तू घर छोड़ भाग गया
तो तेरे घर आने के लिए इसने भगवान शंकर से मन्नत मांगी और कसम ली कि तू आएगा तभी अंगुलियों
का बंधन खोलेगी। आजाद ने खुद मां की अंगुलियो को खोलना चाहा मगर सालों से आपस में बंधी
होने के कारण कई अंगुलियां आपस में चिपक गई थी। धागे अंगुलियों के कहीं अंदर तो कहीं
बाहर नजर आ रहे थे। मां के हाथों का हाल देख आजाद भी अपने आंसू रोक नहीं पाए। आजाद
दिन में जंगल और रात में घर आते तीन दिन बाद ही इलाके में अनजान चेहरे नजर आने लगे
तो आजाद लाख चाहते हुए भी मां के पास कुछ दिन और नहीं रुक पाए।
मेरे इस कहानी को बताने का उद्देश्य
यह है कि मोहब्बत अगर किसी से हो जाय तो जिंदगी में एक रस आ जाता है चाहे चाहत देश
ही क्यों न हो।